कौन हैं आचार्य विद्यासागर महाराज? जिनको याद कर भावुक हुए PM मोदी
Acharya Vidyasagar Ji Maharaj: जैन धर्म के प्रमुख संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने दिगंबर मुनि परंपरा के अनुसार 17 फरवरी को सुबह 2:35 बजे अपना शरीर त्याग दिया। उनके समाधि में लीन होने से भारत सहित संपूर्ण जैन समाज में शोक की लहर है।
आपको बता दें कि,विद्यासागर महाराज ने आचार्य पद से इस्तीफा देने के बाद तीन दिनों तक उपवास और मौन रखा था। इसके बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये। उनके समाधि लेने की खबर के बाद डोंगरगढ़ में जैन समाज के लोग जुटने लगे हैं। उनका अंतिम संस्कार दोपहर 1:00 बजे किया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आचार्य विद्यासागर महाराज कौन थे और पीएम मोदी भी उनके बहुत बड़े भक्त थे।
पीएम मोदी ने ट्वीट कर जताया शोक
पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के अनगिनत भक्त हैं। आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें समाज में उनके अमूल्य योगदान के लिए याद रखेंगी। उन्हें आध्यात्मिक जागृति, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य कार्यों में उनके प्रयासों के लिए याद किया जाएगा।
कौन हैं आचार्य विद्यासागर महाराज?
दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्यश्री विद्यासागर महाराज एक अद्वितीय व्यक्ति हैं, जिन्होंने अब तक 505 मुनि, आर्यिका, ऐलक और क्षुल्लक दीक्षाएं दी हैं। उनके साथ एक और खास आचार्य हैं, जो अपने क्षेत्र में 325 दीक्षाएं देने के लिए मशहूर हैं। वर्तमान में आचार्यश्री का संघ देश में सबसे बड़ा है, जिसमें 300 से अधिक मुनिश्री एवं आर्यिकाएं हैं। उनके विहार के बीच में भी, अधिकांश संघ उनके साथ हैं।
आचार्यश्री द्वारा प्रथम दीक्षा समय सागर 8 मार्च 1980 को हुई थी, जो छतरपुर जिले के दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि में हुई थी। दूसरी दीक्षा 15 अप्रैल 1980 को सागर जिले के मोराजी भवन में दी गई। मुनिश्री क्षमा सागर, मुनिश्री संयम सागर और मुनिश्री सुधा सागर की दीक्षा 20 अगस्त 1982 को छतरपुर के नैनागिरि सिद्ध क्षेत्र में हुई थी।
आचार्यश्री ने पिछले चार वर्षों से कोई दीक्षा नहीं दी है और अंतिम दीक्षांत समारोह 28 नवंबर 2018 को ललितपुर, उत्तर प्रदेश में आयोजित किया गया था। जिसमें 10 साधुओं को दीक्षा दी गई। आचार्यश्री का आचार्य पद पर दीक्षा 22 नवम्बर 1972 को नसीराबाद, अजमेर, राजस्थान में हुआ। इसके बाद आचार्यश्री के मार्गदर्शन में लेखन करते हुए आचार्यश्री ज्ञान सागर महाराज समाधिस्थ हो गये। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें एक गुरु पहले शिष्य को दीक्षा देते थे और फिर उनके मार्गदर्शन में समाधिस्थ हो जाते थे।
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