UNU Report on India in Lockdown: यूएनयू रिसर्च में दावा, लाॅकडाउन के बाद भारत में पैदा होगा गरीबी का संकट, इतने साल पीछे जाएगा देश

UNU Report on India in Lockdown: यूएनयू रिसर्च में दावा, लाॅकडाउन के बाद भारत में पैदा होगा गरीबी का संकट, इतने साल पीछे जाएगा देश

नई दिल्ली: भारत इन दिनों कोरोना का सामना तो कर ही रहा है लेकिन इसके बाद जो समस्या पैदा होने वाली है वह आगे चलकर देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद घातक साबित होगी. देश में इन दिनों कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन का पार्ट 2 चल रहा है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से देश को जो आर्थिक नुकसान हो रहा है उसका प्रभाव कम करने के लिए सरकार हरसंभव कदम भी उठा रही है. इसके बावजूद यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी (UNU) के एक रिसर्च के अनुसार लाॅकडाउन के बाद भारत में जो समस्या उत्पन्न होगी वह भारत को खराब स्थिति में पहुंचा देगा. 
 
कहा गया है कि लाॅकडाउन से भारत को जो नुकसान होगा उसमें पहला तो ये है कि उससे 104 मिलियन यानी 10.4 करोड़ नए लोग गरीब हो जाएंगे. दरअसल यूएनयू ने विश्व बैंक द्वारा तय गरीबी मानकों के आधार पर यह आंकलन किया है जो कि भारत के लिए बेहद निराशा का सबब हो सकता है. बता दें कि भारत की कुल आबादी में गरीबों की संख्या अब 68 फीसदी हो जाएगी. रिसर्च के मुताबिक, विश्व बैंक के आय मानकों के अनुसार, भारत में फिलहाल करीब 81.2 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं. यह देश की कुल आबादी का 60 फीसदी हैं. महामारी और लॉकडाउन बढ़ने से देश के आर्थिक हालात पर विपरीत असर पड़ेगा और गरीबों की यह संख्या बढ़कर 91.5 करोड़  हो जाएगी जो कि कुल आबादी का 68 फीसदी हिस्सा होगा.
 
भारत के हालात भी होंगे बदतर 
 
सबसे बड़ी त्रासदी तो देश के लिए यह होगी कि अगर यूएनयू की यह बात सच साबित होती है तो देश 10 साल पहले की स्थिति में पहुंच जाएगा. दरअसल विश्व बैंक ने आय के आधार पर देशों को चार भागों में बांटा है. इन देशों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए तीन मानक तय हैं. ज्ञात हो निम्न आय वर्ग पर प्रति व्यक्ति सालाना आय 1026 डॉलर से कम वाले देशों को इसमें शामिल किया जाता है. इन देशों में रोजाना 1.9 डॉलर से कम कमाने वाले लोग गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं. यदि गरीब देशों के लिए निर्धारित गरीबी के मानक 1.9 डॉलर रोजाना आय करीब 145 रुपए को मानें तो भारत में कोरोना संकट के कारण 15 लाख से 7.6 करोड़ अति गरीब की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे. दरअसल भारत में प्रति व्यक्ति सालाना आय 2020 डॉलर यानी सालाना करीब 1.5 लाख रुपए है जबकि कुल आबादी में 22 फीसदी लोगों की आय 1.9 डॉलर प्रतिदिन से कम है. 
 
शोधकर्ताओं का कहना है कि सबसे खराब स्थिति में वैश्विक स्तर पर आय और खपत में 20 फीसदी की कमी आएगी. जिन देशों में 3.2 डॉलर से कम आय वाले गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं, उनमें 8 फीसदी और आबादी गरीबों में शामिल हो जाएगी. रिसर्च के मुताबिक सबसे खराब स्थिति में लोअर मिडिल आय वर्ग वाले देशों में 54.1 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे. इस आर्थिक संकट के कारण पूरी दुनिया में पैदा होने वाले नए गरीबों में हर 10 में से 2 लोग भारत के होंगे.
 
 

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