सोशल मीडिया बन रहा नींद का दुश्मन, रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

सोशल मीडिया बन रहा नींद का दुश्मन, रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

नई दिल्ली: एक स्वस्थय सेहत का राज होता है, एक अच्छी नींद लेकिन आज के समय में ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी के साथ खेल रहे है। एक अच्छी नींद पूरी करना बहुत मुश्किल साबित हो चुका है। चाहे वो किसी भी उम्र का इंसान हो। आज-कल सोशल मीडिया के बहुत अधिक इस्तेमाल की वजह से बच्चे लगभग एक पूरी रात की नींद खोते जा रहे है।

बता दें कि, De Montfort University के डॉ जॉन शॉ के नेतृत्व में लीसेस्टर (Leicester) के स्कूलों में किए गए एक अध्ययन में बच्चों की नींद को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। आमतौर पर बच्चे 12 घंटे की बजाए मात्र 8 घंटे की ही नींद ले पाते हैं।वहीं नींद में आयी कमी की मुख्य वजह मोबाइल फोन बताई गई है। ये अध्ययन 10 साल के 60 स्कूली छात्रों पर किए गए। जिसमें से ज्यादातर के पास सोशल मीडिया की सुविधा मौजूद थी। इनमें से 69 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वो चार घंटे रोजाना मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते है। जिनमें से लगभग 89 प्रतिशत के पास खुद का स्मार्टफोन होने की बात मानी। लगभग 55 प्रतिशत बच्चें टेबलेट का प्रयोग करते हैं और 23 प्रतिशत बच्चे लैपटॉप का इस्तेमाल करते है।

सोशल मीडिया से आए बदलाव

निश्चित तौर पर इस सोशल मीडिया ने हमारे जीवन को सरल, सहज और सुविधाजनक बनाने का बहुत बड़ा काम किया है। लेकिन इस सिक्के के दूसरे पहलू के रूप में इसने मनुष्य के स्वास्थ्य के सामने; विशेषकर मन संबंधी विकारों की अनेक चुनौतियां भी प्रस्तुत की है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती है – नींद के घंटों में कमी का होना, उसके समय का विस्थापन, नींद में व्यवधान, जिनके आगे चलकर डिप्रेशन और डाइमेंशिया जैसी खतरनाक बीमारियों का रूप लेने की आशंका बढ़ जाती है।

मोबाइल का हार्मोन से संबंध

आपने ध्यान दिया होगा कि मोबाइल से निकलने वाले प्रकाशों में सबसे अधिक मात्रा नीले रंग के प्रकाश की होती है। यह नीला प्रकाश हमारे मेलाटोटीन नामक हार्मोंस के स्तर को प्रभावित करता है। इस प्रकाश को देखकर दिमाग इसे दिन का प्रकाश समझने लगता है। इससे मेलाटोटीन का निकलना कम हो जाता है, जो हमें नींद देता था। अब हमारा दिमाग सतर्क होने लगता है।

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