Margshirsha Amavasya 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, साल का नौंवा महीना यानी मार्गशीर्ष मास चल रहा है। जिसे अगहन मास भी कहते हैं। वहीं, मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस साल मार्गशीर्ष अमावस्या शनिवार 30 नवंबर को है। ये दिन स्नान-दान और पितरों की कृपा पाने के लिए खास माना जाता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस माह का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है, उस घर में साक्षात माता लक्ष्मी का वास होता है। ये माह भगवान विष्णु को समर्पित होता है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर आप चाहते है कि आप पर भगवान की कृपा-दृष्टि बनी रहे तो आपको मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन शुभ मुहूर्त, पूजन-विधि के अनुसार ही स्नान-दान करना होगा।
कब है मार्गशीर्ष अमावस्या?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि 30 नवंबर की सुबह 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी। जिसका समापन 1 दिसंबर को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि की मान्यता के अनुसार, मार्गशीर्ष अमावस्या इस साल 30 नवंबर शनिवार को ही मनाई जाएगी।
मार्गशीर्ष अमावस्या में तुलसी का महत्व
ज्योतिषियों की मानें तो सनातन धर्म में मार्गशीर्ष अमावस्या को बेहद खास महत्व दिया गया है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और स्नान-दान किया जाता है। इसके अलावा इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की भी उपासना की जाती है।
कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है, उस घर में साक्षात माता लक्ष्मी का वास होता है। क्योंकि, तुलसी को माता लक्ष्मी का ही रूप माना गया है। इसी महीने में भगवान विष्णु तुलसी के पास ही विराजमान रहते हैं। इसलिए, इस महीने में तुलसी पूजा करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या में तुलसी को पीला धागा, लाल कलावा, लाल चुनरी चढाई जाती हैं। इसके बाद दीपक जलाकर तुलसी माता की पूजा की जाती हैं।
स्नान-दान का शुभ-मुहूर्त
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-दान का विधान है। ऐसे में इस दिन स्नान का शुभ मुहूर्त 5 बजकर 8 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 02 मिनट तक का है।
मार्गशीर्ष अमावस्या की पूजन विधि
1. इस दिन सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
2. अगर किसी पवित्र नदी में स्नान करना संभव नहीं है तो नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डाल दें।
3. स्नान के बाद पूजन करें और फिर व्रत का संकल्प लें।
4. इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए अपने पूर्वजों का स्मरण कर उन्हें भी जल अर्पित करें।
5. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितरों के तर्पण और दान का विशेष महत्व है।
6. इसके साथ ही इस दिन जरूरतमंद लोगों को दान देने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
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