राजस्थान सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति हुई कारगर

राजस्थान सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति हुई कारगर

जयपुर:राजस्थान शासन सचिवालय पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के एक ट्वीट से विवाद खडा हो गया है। प्रदेश के राज्य कर्मचारी मंत्री से खासे नाराज हैं और राजस्थान सरकार की भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टालरेंस‘ नीति का हवाला देकर विरोध दर्ज करा रहे हैं। इसकी बानगी तब मिली जब राजधानी के तिलक मार्ग स्थित योजना भवन के बेसमेंट में रखी एक अलमारी से 2 करोड 31 लाख रूपए की नकदी व सोना मिला।

राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक ने मामले से मुख्यमंत्री को अवगत कराया और बिना कुछ छिपाए रात ग्यारह बजे पत्रकारों को बुलाकर इसकी जानकारी दी। इस राशि का कोई दावेदार नहीं मिला, पुलिस ने जांच में पाया कि यह राशि भ्रष्टाचार की हो सकती है तो मामला भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को सौंपा। बाद में इस प्रकरण में सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त निदेशक वेदप्रकाश यादव को गिरफ्तार किया। सरकार ने उसे पद से निलंबित कर दिया। पिछले पांच साल में एसीबी के हत्थे चढे भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों की फेहरिस्त लंबी है। 2019 में रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकडने के 62, 2020 में 49, 2021 में 102 तो 2022 में 103 और 2023 में अब तक 66 केस दर्ज किए हैं। इन पांच सालों में आय से अधिक के 14 तो पद के दुरूपयोग के 30 मामले दर्ज किए गए।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं कि पूरे देश में भ्रष्ट अधिकारी, कर्मचारियों पर जितने छापे राजस्थान में मारे गए, उतने किसी प्रांत में नहीं मारे गए। इसका मतलब यह नहीं कि यहां भ्रष्टाचार ज्यादा है,इसका अर्थ यह है कि सरकार भ्रष्टाचार के मामले को लेकर सरकार बहुत गंभीर है। ज्यादा छापे इस बात का प्रमाण है कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस की नीति पर काम करती है। भ्रष्टाचार को लेकर राजस्थान सरकार किस कदर गंभीर है, इसका पता इस बात से लगता है कि छोटे बडे कर्मचारी ही नहीं, कलेक्टर, एस पी जैसे अधिकारी भी अगर काम अटकाते हैं या रिश्वत मांगते हैं।तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के शिकंजे से बच नहीं पा रहे। इससे प्रदेश के सरकारी विभागों में भ्रष्ट कर्मचारियों में भय का माहौल देखने को मिल रहा है। दूसरी ओर ऐसे कर्मचारी जो ईमानदारी हैं, वे उत्साह के साथ काम कर रहे हैं।

ऐसा भी मामला सामने आया जब एसीबी का कार्मिक ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया तो वह भी बच नहीं पाया। इसके इतर, जब कोई निर्दाष कर्मचारी फंस गया तो उसके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली, उसे अभयदान मिला। मुख्यमंत्री खुद एसीबी की मॉनिटरिंग करते हैं, उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों में ब्यूरो को ‘फ्री हैण्ड‘ तो कर रखा है साथ यह भी हिदायत दी हुई है कि रिश्वतखोर बच न पाए तो कोई निर्दोष कर्मचारी फंस न जाए। ब्यूरो की कार्रवाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कलेक्टर जैसे पद पर काम करने वाले व्यक्ति ने जब रिश्वत की मांग की तो वह भी ब्यूरो की निगाह से बच नहीं पाया।

इतना ही नहीं पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी जब रिश्वत लेने के लिए लालायित हो तो वे भी रंगे हाथों पकडे जाते हैं। इसी तरह एसओजी में काम कर रहे एडीशनल एस पी रैंक के अफसरों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो वे भी नहीं बचे तो छोटे बडे अधिकारी कर्मचारी भी ब्यूरो के राडार पर आने से बच नहीं सके। एसीबी के वकील भी कोर्ट में तमाम सबूतों और गवाहों के साथ मजबूती से पैरवी करते हैं। इसी का नतीजा है कि साल 2022 खत्म होने तक 109 मामलों में आरोपियों को कोर्ट द्वारा सजा सुनाई गई।

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