“वन नेशन वन इलेक्शन” पर विपक्षी दलों के बदले सुर, मायावती ने किया समर्थन, कांग्रेस-AIMIM ने किया विरोध

“वन नेशन वन इलेक्शन” पर विपक्षी दलों के बदले सुर, मायावती ने किया समर्थन, कांग्रेस-AIMIM ने किया विरोध

One Nation One Election Bill: बुधवार को मोदी सरकार की कैबिनेट ने “वन नेशन वन इलेक्शन”को मंजूरी दे दी गई। शीतकालीन सत्र में इस बिल को पेश किया जाएगा। बता दें कि पीएम मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हो रही थी। लंबे वक्त से केंद्र सरकार इसको लेकर कवायद कर रही थी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी।

मायावती ने किया समर्थन

इस संदर्भ में बसपा चीफ मायावती ने लिखा कि- एक देश, एक चुनाव’ की व्यवस्था के तहत् देश में लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय का चुनाव एक साथ कराने वाले प्रस्ताव को केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा आज दी गयी मंजूरी पर हमारी पार्टी का स्टैण्ड सकारात्मक है, लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित में होना ज़रूरी है। इस मामले पर समाजवादी पार्टी ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि केंद्र की भाजपा सरकार ये जानती है कि जहां जहां भाजपा की सरकार है। वहां जब भी चुनाव होंगे भाजपा साफ हो जाएगी। इसलिए भाजपा चुनाव से भागना चाहती है। ये वही भाजपा है जो नोटबंदी के बड़े बड़े फायदे गिना रही थी। वन नेशन वन इलेक्शन का जब ड्राफ्ट आएगा तो उस समय समाजवादी पार्टी अपना स्टैंड क्लियर करेगी।

विपक्ष का आया बयान सामने

कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद ने कहा कि मोदी सरकार का एक और शिगूफा एक और ड्रामा है। ये सरकार चारों तरफ से गिर गई है। उन्होंने कहा कि चले तो थे 400 का आंकड़ा बनाकर पर सिमट गए 240 में। कांग्रेस नेता ने पूछा कि साधारण बहुमत तो इकट्ठा करना मुश्किल है। ये मोदी सरकार तो दो तिहाई बहुमत कहां से लाएगी ?  अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए इस चुनाव में किसी तरीके से मुद्दे बदलने के लिए यह चर्चा में लाया गया विषय है।

वहीं एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, मैंने लगातार 'वन नेशन वन इलेक्शन' का विरोध किया है। यह संघवाद को नष्ट करता है और लोकतंत्र से समझौता करता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह को छोड़कर किसी के लिए भी कई चुनाव कोई समस्या नहीं हैं। सिर्फ इसलिए कि उन्हें नगरपालिका और स्थानीय निकाय चुनावों में भी प्रचार करने की बहुत जरूरत है। लगातार और समय-समय पर चुनाव लोकतांत्रिक जवाबदेही में सुधार करते हैं।

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