नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने दी दक्षिणी महासागर को मिली महासागर की मान्यता, जानें क्या है इसका महत्व

नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने दी दक्षिणी महासागर को मिली महासागर की मान्यता, जानें क्या है इसका महत्व

नई दिल्ली: वैज्ञानिको को पृथ्वी पर पांचवां महासागर मिल गया है. हमारी धरती पर मौजूद दक्षिणी महासागर को अब पांचवें महासागर की मान्यता मिल गई है. लेकिन अब यह मान्यता नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने दी है. इसे पहले इसे सागर के रूप में दर्जा मिला हुआ था. पांचवें महासागर का नाम साउदर्न महासागर  है. दक्षिणी महासागर अंटार्कटिका में है. इससे पहले पथ्वी पर चार महासागर थे. प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर और पांचवां महासागर यानी दक्षिणी महासागर शामिल है.

दक्षिणी महासागर में सिर्फ बर्फीली चट्टानें, हिमखंड और ग्लेशियर हैं. 8 जून को वर्ल्ड ओशन डे पर नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने इसे पांचवें महासागर की मान्यता दी थी. नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी का कहना है कि बहुत सालों से वैज्ञानिकों द्वारा दक्षिणी महासागर को मान्यता नहीं मिल पा रही थी. इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी तरह का समझौता नहीं हुआ था. इसलिए इसे अभी तक आधिकारिक तौर पर महासागर की श्रेणी में नहीं रखा गया था.

दक्षिणी महासागर को मान्यता प्राप्त होने पर सबसे ज्यादा असर छात्रों पर पड़ेगा. अब छात्र इस पर शोध कर सकेंगे. दक्षिणी महासागर के बारे में नई जानकारियां हासिल करेंगे. इसे भी सभी देशों में मान्यता मिलेगी. इसे अलग-अलग देशों के भूगोल और विज्ञान की किताबों में शामिल किया जाएगा. इसकी खासियत और मौसम के बारे में पढ़ाया जाएगा. अंटार्कटिका को भी नक्शे में 1915 में शामिल किया गया था.

नेशनस जियोग्राफिक सोसाइटी चार महासागरों को सीमाओं के आधार पर नाम दिया गया है. वही दक्षिणी महासागर को महाद्वीप के नाम से नहीं बुलाया जाएगा. क्योंकि यह अंटार्कटिक सर्कमपोलर करेंट (एसीसी) से घिरा हुआ है, जो पश्चिम से पूर्व की तरफ बहता है.  एसीसी का निर्माण तब हुआ था, जब 3.4 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर धरती के प्लेट खिसकने से जब दक्षिण अमेरिका से अंटार्कटिका अलग हुआ था. यही पानी दुनिया के बॉटम में बहता रहता है.

आज के समय में एसीसी का पानी पूरी दुनिया के महासागरों में बहता है. यह पूरे अंटार्कटिका के चारों तरफ घेर कर रखता है. इसे ड्रेक पैसेज कहते हैं. यह दक्षिण अमेरिका के केप हॉर्न और अंटार्कटिका प्रायद्वीप के बीच में है. इसलिए एसीसी में जितना पानी बहता है, वह दक्षिणी महासागर का ही है. यहां का पानी बाकी महासागरों के पानी से ज्यादा ठंडा और कम नमक वाला है.

एसीसी अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर से पानी खींच कर एक वैश्विक कन्वेयर बेल्ट का काम करता है. यह धरती की गर्मी को कम करता है. इसकी वजह से ठंडा पानी समुद्र की गहराइयों में कार्बन जमा करता है. इसी वजह से हजारों समुद्री प्रजातियां एसीसी के पानी में रहना पसंद करती हैं.

बता दें कि दक्षिणी महासागर को सबसे पहले 16वीं सदी में स्पैनिश खोजी वास्को नुनेज डे बालबोआ ने खोजा था. साथ ही इस सागर की अंतरराष्ट्रीय महत्ता को भी बताया था. क्योंकि इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समुद्री व्यापार होता है.

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