नालंदा विश्वविद्यालय 800 साल बाद एक बार फिर से पुराने स्वरूप में लौट रहा है। पीएम मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नवीन परिसर का उद्घाटन किया है। ऐसे में इस विश्वविद्यालय से जुड़ा इतिहास फिर से सामने आ खड़ा हुआ है। दरअसल, इस यूनिवर्सिटी को दुनिया का पहला विश्वविद्यालय माना जाता है। इसके साथ ही इससे जुड़ा बेहद दिलचस्प इतिहास है, जिसे लकर कई किताबें लिखी गई है।
बता दें कि साल 1193 में दिल्ली सल्दनत के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर इस विश्वविद्यालय को जला दिया था। इस यूनिवर्सियी की लाइब्रेरी में इतनी किताबें थी कि 3 महिनों तक आग धधकती रही थी। वहीं नए कैंपस की बात करें तो ये परिसर ऐतिहासिक नगरी राजगीर की पांच पहाड़िया में से एक वैभारगिरी की तलहटी में बना हुआ है। करीब 455 एकड़ में फैले नए कैंपस में 1750 करोड़ रुपये की लागत से नए भवनों और नए सुविधाओं का निर्माण किया गया है। हालांकि अब भी इस कैंपस में काम चल रहा है।
19वीं शताब्दी में मिली थी बौद्धिक मूर्तियां
गौरतलब है कि मॉडर्न विश्व को इसके बारे में 19वीं शताब्दी के दौरान पता चला था। कई सदी तक ये विश्वविद्यालय जमीन में दबा हुआ था। 1812 में बिहार में लोकल लोगों को बौद्धिक मूर्तियां मिली थी, जिसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों ने इस पर अध्ययन किया। इसके बाद इसके बारे में पता चला था। इसके साथ ही पीएम द्वारा परिसर के उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर, बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा तथा अन्य प्रतिनिधि शामिल हुए। इस कार्यक्रम में 17 देशों के राजदूत भी शामिल हुए।
ये है विश्वविद्यालय की खासियत
वहीं इस विश्वविद्यालय में करीब 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और पढ़ाई के लिए 9 मंजिला एक लाइब्रेरी थी। साथ ही यह कई एकड़ में फैला हुआ था। यहां हर सब्जेक्ट के गहन अध्ययन के लिए बनाई गई थी। इस 9 मजिला लाइब्रेसी में करीब 90 लाख से ज्यादा किताबें रखी गई थी। बताया जाता है कि जब इसमें आग लगाई गई तो इसकी लाइब्रेरी 3 महीने तक जलती रही थी।
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