Health Tips: आज की भागदौड़-भरी जिंदगी में लोग अकसर अपनी सेहत का ध्यान रखना भूल जाते है। समय पर खाना-पीना ना होने से ज्यादातर लोग बीमारी का शिकार हो जाते हैं। हमारे दादी-नानी के समय बीमारियों के इलाज के लिए एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद जैसी पद्धतियां अपनाई जाती थी। ये पद्धतियां आज भी असरदार है।
ज्यादातर लोग होम्योपैथी की ओर खींचे चले जाते हैं। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि होम्योपैथी के इस्तेमाल से बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते है भारत में होम्योपैथी की शुरुआत कब और कैसे हुई? होम्योपैथी में इलाज कैसे किया जाता है?
भारत में होम्योपैथी की शुरुआत कब हुई?
बता दें, होम्योपैथी की शुरुआत साल 1796में जर्मनी में हुई थी। पूरी दुनिया में जर्मन डॉक्टर सैमुअल हैनीमैन को होम्योपैथी का जनक माना जाता है। उनका जन्म 10अप्रैल को हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व होम्योपैथी दिवस के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, भारत में भारत में महेंद्र लाल सरकार को होम्योपैथी का जनक कहा जाता है।
क्या है होम्योपैथी?
बता दें, होम्योपैथी ग्रीक शह्द से लिया गया है। होम्यो का मतलब समान और पैथो को रोग कहते हैं। सरल भाषा में समझें तो एक ऐसा पदार्थ, जिसका ज्यादा मात्रा में सेवन करने से रोग उत्पन्न होता है। लेकिन जब उसी पदार्थ का कम मात्रा में सेवन किया जाए तो, वह उस रोग को ठीक कर सकता है।
होम्योपैथी और एलोपैथी में क्या अंतर है?
बता दें, होम्योपैथी और एलोपैथी दोनों में बीमारियों का इलाज किया जाता है। होम्योपैथी में बीमारी और उसके लक्षणों का भी इलाज किया जाता है। वहीं, एलोपैथी में बीमारी का डायग्नोसिस करने के बाद इलाज किया जाता है। होम्योपैथी में किसी भी बीमारी के लक्षणों की पहचान कर एक ही दवाई दी जाती है। लेकिन एलोपैथी में हर बीमारी के लक्षणों में अलग-अलग दवाई दी जाती हैं। होम्योपैथी में इनफर्टिलिटी, कोविड, डेंगू, मलेरिया, बच्चों में ऑटिज्म जैसी कई बीमारियों का इलाज किया जाता है।
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