पॉल्यूशन चैकिंग सेंटरों के सामने गाडियों की संख्या बड़ी। मशीनें खराब,सर्वर ठप

पॉल्यूशन चैकिंग सेंटरों के सामने गाडियों की संख्या बड़ी। मशीनें खराब,सर्वर ठप

ट्रैफिक चालान के दाम बढ़ते ही पॉल्यूशन चैकिंग सेंटरों के सामने गाडियों की संख्या लगातार बढ़ने लगी है। नतीजा ये कि पॉल्यूशन चैक करने वाली मशीनें ही खराब होने लगी हैं। सर्वर ठप पडे हैं। और लोग लंबी कतारें लगाकर इंतजार कर रहे हैं।

दरअसल, बड़े ट्रैफिक चालान का डर अब पॉल्यूशन जांच कैंद्रों के बाहर देखने को मिल रहा है। स्कूटी हो या जैगुआर सभी कतारों में लगने को मजबूर हैं। ट्रैफिक चालान के दाम बढ़ते ही पॉल्यूशन चैकिंग सेंटरों के सामने गाडियों की संख्या लगातार बढ़ने लगी है, नतीजा ये कि पॉल्यूशन चैक करने वाली मशीनें ही खराब होने लगी हैं। सर्वर ठप पडे हैं। और लोग लंबी कतारें लगाकर इंतजार कर रहे हैं। ये संख्या इतनी ज्यादा हो चुकी है कि पॉल्यूशन चैक करने वाली मशीने और सर्वर जवाब दे चुके हैं। कहीं सर्वर डाउन है तो कहीं पॉल्यूशन चैक करने वाली मशीने ओवर लोड से खराब हो रही हैं। ऐसे में लोग कई घण्टों से पॉल्यूशन सर्टिफिकेट मिलने का इंतजार कर रहे हैं।

इस तरह से सड़कों पर खडी गाडियां आपने CNG  स्टेशनों के बाहर देखी होंगी लेकिन आज ये गाडियां CNG भरवाने के लिए नहीं, बल्कि पॉल्यूशन सर्टिफिकेट बनवाने के लिए खड़ी हैं। पॉल्यूशन केंद्रों पर भीड से बचने के लिए कोई सुबह 6 बजे आया है तो कोई रात 1 बजे तक रुक रहा है। दिल्ली में 1 करोड़ गाडियां हैं और 950 पॉल्यूशन कंट्रोल केंद्र हैं। इन 1 करोड़ गाडियों में से सिर्फ 75 लाख गाडियों एक्टिव हैं और उनमें से भी हर साल सिर्फ 50 लाख गाडियों का ही पॉल्यूशन चैक होता है।

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