Swami Prasad Maurya Declared Absconding: उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RSSP) के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य को अदालत ने भगोड़ा घोषित कर दिया है। लखनऊ की एसीजेएम तृतीय (MP/MLAकोर्ट) आलोक वर्मा की अदालत ने बिना तलाक के धोखाधड़ी से शादी के मामले में दर्ज मुकदमे में लगातार पेश न होने पर पूर्व मंत्री मौर्य और उनकी पूर्व सांसद बेटी संघमित्रा को भगोड़ा घोषित कर दिया है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कब किसी व्यक्ति को भगोड़ा घोषित किया जाता है और ऐसा होने पर उसे क्या परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
ताजा मामला लखनऊ के गोल्फ सिटी निवासी दीपक कुमार स्वर्णकार और पूर्व बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य के बीच विवाद का है। एसीजेएम तृतीय (MP/MLA) आलोक वर्मा की अदालत ने मौर्य और उनकी बेटी समेत तीन अन्य आरोपियों को तीन बार तलब किया था। इसके अलावा उनके खिलाफ दो बार जमानती वारंट और एक बार गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया था। इसके बावजूद जब आरोपी कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो कोर्ट ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया।
भगोड़े को कानूनी भाषा में क्या कहते हैं?
वैसे तो आम बोलचाल की भाषा में ऐसे लोगों के लिए भगोड़ा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन कानून की भाषा में इसे फरार व्यक्ति की उद्घोषणा कहा जाता है। भगोड़ा घोषित आरोपी की संपत्ति भी जब्त की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे के मुताबिक, जब कोई व्यक्ति कोर्ट के आदेश के बावजूद कोर्ट नहीं पहुंचता, कोर्ट के समन के बाद भी कोर्ट में पेश नहीं होता, किसी भी मामले में कोर्ट की नजर में जांच में सहयोग नहीं करता। वह आरोपी है। ऐसी स्थिति में अदालत किसी को भगोड़ा घोषित कर देती है।
पहले CRPCकी धारा 82 और 83 के मुताबिक कार्रवाई की जाती थी। इससे पहले आरोपी को CRPCकी धारा 82 के तहत भगोड़ा घोषित किया गया था। फिर धारा 83 के तहत उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई।
पेश होने पर रुक सकती है कुर्की
अगर आरोपी भगोड़ा घोषित होने के बाद खुद पेश होता है तो कोर्ट उसके खिलाफ कुर्की आदि की कार्रवाई को भी खारिज कर सकती है। यदि अभियुक्त स्वयं उपस्थित नहीं होता है और अपने वकील को भेजता है तो उसके वकील को एक सप्ताह के भीतर सूचित करना होगा कि अभियुक्त अदालत में कब उपस्थित होगा। ऐसा नहीं होने पर आरोपी के खिलाफ जब्ती की कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
भगोड़ा घोषित होने पर आरोपी को निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने का अधिकार होता है। आमतौर पर इस स्थिति में निचली अदालत के आदेश के 30 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जाती है। यदि आरोपी अपील दायर करने में देरी करता है तो उसे इसका कारण बताना होगा।
आरोपित की अनुपस्थिति में भी चल सकता है ट्रायल
अधिवक्ता अश्विनी दुबे का कहना है कि अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) लागू हो गयी है। इसमें अनुपस्थिति में ट्रायल की भी बात कही गई है। इसका मतलब यह है कि किसी आरोपी की अनुपस्थिति में भी उसके खिलाफ अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है।
अधिवक्ता दुबे का कहना है कि पहले CRPCमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि आरोपी की अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सके। उस समय किसी को भगोड़ा घोषित कर उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी और उसकी फोटो आदि को विभिन्न मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया जाता था। आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब बीएनएस में सबसे पहले किसी भी आरोपी को भगोड़ा घोषित किया जाएगा। तो उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और कोर्ट में मुकदमा भी चलाया जा सकता है।
Leave a comment