जानें कैसे हुई Amul कंपनी की शुरुआत, आखिर कैसे है इसका सरदार पटेल से सम्बन्ध

जानें कैसे हुई Amul कंपनी की शुरुआत, आखिर कैसे है इसका सरदार पटेल से सम्बन्ध

नई दिल्ली:  दूध के दाम बढ़ने के बाद अमूल कंपनी एक बार फिर से चर्चा में हैं। वर्तमान में अमूल ही देश की सबसे बड़ी मिल्क प्रोडक्ट वाली कंपनी है। लेकिन क्या आपको पता है कि अमूल की शुरुआत कैसे हुई थी। आइए हम आपको बताते हैं, यह लाइन हम सभी को याद होगी अमूल,द टेस्ट आफ इडीया सबसे परिचित पंक्तियों में से एक है जिसे हमने बचपन से सुना है। यह भारत में सबसे लोकप्रिय खाद्य ब्रांडों में से एक है।

भारत में अमूल चीज, मक्खन, दूध, आइसक्रीम हर घर का हिस्सा है। अमूल बटर के प्रति हमारे लगाव को इस बात से पहचाना जा सकता है कि यह सबसे लोकप्रिय ब्रांड है जो मेरी मां की रसोई में, फाइव स्टार होटल और रेस्तरां के किचन में और स्ट्रीट साइड फूड स्टॉल पर पाया जा सकता है। उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक खाने का मेन्यू बदल सकता है लेकिन जब मक्खन की बात आती है तो हम में से कई लोग अमूल को ही पसंद करते हैं। इसी तरह इसके स्वादिष्ट और स्वादिष्ट उत्पाद अमूल ब्रांड की कहानी भी उतनी ही आकर्षक और प्रेरक है।

अमूल की शुरुआत कैसे हुई

स्वादिष्ट खाद्य उत्पादों के ब्रांड की नींव के पीछे एक संघर्ष की कहानी थी। इस कहानी में शोषण, संयुक्त प्रयास, सहकारी आंदोलन और श्वेत क्रांति की दासता है।बात है देश को आजादी मिलने के कुछ साल पहले की। अंग्रेज भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने की तैयारी में थे। दूसरी तरफ, गुजरात के कैरा जिले के पशुपालक दूध के दलालों से परेशान थे। दूध बेचकर अपना घर चलाने वाले इन पशुपालकों को सही पैसे नहीं मिल पाते थे जबकि ये बिचौलिए मोटा कमीशन कमा रहे थे। ये बिचौलिए कम दामों पर दूध खरीदते और अपना मोटा मुनाफा लेकर दूध बेच देते।

बॉम्बे मिल्क स्कीम ने पशुपालकों को पहुंचाना नुकसान

साल 1945 में कैरा के किसानों को समझ आने लगा कि उन्हें कुछ न कुछ तो करना ही होगा। किसान परेशान ही थे कि उस समय बॉम्बे की सरकार ने बॉम्बे मिल्क स्कीम की शुरुआत की। इसके तहत, गुजरात के आणंद ने बॉम्बे तक दूध ले जाना था। उस समय के ट्रांसपोर्ट के हिसाब से जितना समय लगना था उतने में दूध खराब हो जाता। ऐसे में दूध को पॉश्चराइज करने की बात सामने आई।

इस समस्या का हल निकालने के लिए बॉम्बे की सरकार ने पॉलसन लिमिटेड से एक समझौता किया। इस समझौते में कहा गया कि पॉलसन लिमिटेड ही दूध की सप्लाई करेगा। हालांकि, इस समझौते में दूध खरीदने की कीमत के बारे में कुछ तय नहीं हुआ। लिहाजा झटका लगा किसानों और पशुपालकों को। औने-पौने दाम पर दूध खरीदा जाता था और उसी दूध को बॉम्बे भेजा जाता था।

सरदार पटेल ने दी कॉपरेटिव बनाने की सलाह

खुद गुजरात से ही आने वाले सरदार पटेल उन दिनों देश के कद्दावर नेता थे। वह कई आंदोलनों की अगुवाई कर चुके थे। कैरा के किसान भी उनसे मदद मांगने पहुंचे। सरदार पटेल उन दिनों कॉपरेटिव यानी सहकारी समितियों को बढ़ावा दे रहे थे। ऐसे में सरदार पटेल ने किसानों को सुझाव दिया कि वे मिलकर एक सहकारी समिति बनाएं और खुद का पॉश्चराइजेशन प्लांट लगा लें। जिससे वे सीधे बॉम्बे स्कीम में दूध सप्लाई कर सकेंगे।

सरदार पटेल ने किसानों को सलाह दी कि पहले तो कॉपरेटिव बनाने के लिए सरकार से अनुमति मांगिए लेकिन अगर अनुमति न दी जाए तो ठेकेदारों को दूध देना बंद कर दीजिए। सरदार पटेल ने किसानों को इसके खतरे भी समझाए कि अपनी मांग मनवाने के लिए उन्हें प्रदर्शन और हड़ताल करनी पड़ सकती है जिसमें नुकसान भी होगा। हालांकि, लंबे समय से नुकसान झेल रहे किसान एक और नुकसान के लिए तैयार थे।

आज की तारीख में गुजरात कॉपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड देश का सबसे बड़ा फूड प्रोडक्ट मार्केटिंग संगठन है। साल 2021-22 में इसका कारोबार 6.2 बिलियन डॉलर का था। यह संगठन हर दिन 2.63 करोड़ लीट दूध खरीदता है। अब अमूल दूध के अलावा मिल्क पाउडर, दही, चीज़, पनीर और तमाम मिल्क प्रोडक्ट बना रहा है।

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