Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक आदेश, कहा- कैदियों को सम्मान और गरिमा के साथ जीने का हक

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक आदेश, कहा- कैदियों को सम्मान और गरिमा के साथ जीने का हक

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि " कैदियों को भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है।" मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस निर्णय में जाति आधारित भेदभाव और कैदियों के प्रति अमानवीय व्यवहार को समाप्त करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ सख्त कदम

पीठ ने उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश समेत 10राज्यों के कुछ जेल मैनुअल नियमों को असंवैधानिक करार दिया। अदालत ने इस फैसले में संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का उल्लेख किया, जिनमें अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव का निषेध), 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और 23 (जबरन श्रम के खिलाफ अधिकार) शामिल हैं।

उपनिवेशवादी मानसिकता का अंत

फैसले में न्यायालय ने कहा कि कैदियों को सम्मान न देना उपनिवेशवादियों और पूर्व-औपनिवेशिक तंत्रों की मानसिकता का अवशेष है। उन्होंने उल्लेख किया कि ऐतिहासिक रूप से, जेलों का इस्तेमाल केवल कारावास के लिए नहीं, बल्कि वर्चस्व के उपकरण के रूप में किया गया था। न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान ने कैदियों को सम्मान का अधिकार दिया है, जिसे लागू करना आवश्यक है।

सरकार की भूमिका और भेदभाव की समाप्ति

पीठ ने यह भी चेतावनी दी कि यदि सरकार स्वयं नागरिकों के साथ भेदभाव करती है, तो यह सबसे बड़ा अन्याय होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 15में जाति, धर्म और भाषा के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया है, और सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

मानव गरिमा का संरक्षण

सीजेआई ने भेदभाव के नकारात्मक प्रभावों पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि भेदभाव के कारण व्यक्ति का आत्म-सम्मान घटता है और इससे सामाजिक हिंसा का जन्म हो सकता है। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि भारत के संविधान के लागू होने से पहले के भेदभावपूर्ण कानूनों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए।

Leave a comment