आतंकी गुरपतवंत पन्नू ने भारत के खिलाफ एक और साजिश रची, महाकुंभ 2025 को प्रभावित करने की दी धमकी

आतंकी गुरपतवंत पन्नू ने भारत के खिलाफ एक और साजिश रची, महाकुंभ 2025 को प्रभावित करने की दी धमकी

Pannu Campaigns To Disrupt Mahakumbh: खालिस्तानी आतंकवादी और प्रतिबंधित संगठन सिख्स फॉर जस्टिस (SFJ) के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू ने एक बार फिर भारत की एकता और अखंडता को निशाना बनाया है। इस बार उसने महाकुंभ 2025को बाधित करने के लिए नया अभियान शुरू किया है। पन्नू का यह कदम उसकी भारत-विरोधी मंशा को साफ दिखाता है। हिंदुत्व का विरोध करने की आड़ में वह देश की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। देशभर में उसकी इस हरकत की कड़ी निंदा हो रही है।

महाकुंभ में नफरत फैलाने की साजिश

पन्नू ने हाल ही में एक वीडियो जारी किया है। इस वीडियो में उसने हिंदुत्व विचारधारा को खत्म करने और महाकुंभ को बाधित करने के लिए ‘प्रयागराज चलो’ का आह्वान किया है। पन्नू का यह बयान बेहद भड़काऊ और खतरनाक है। महाकुंभ, जो भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक है, अब उसकी साजिशों का नया निशाना बन चुका है। इस तरह की हरकतों से वह उन समुदायों के बीच नफरत फैलाना चाहता है, जो सदियों से शांति और सौहार्द के साथ रहते आए हैं।

पन्नू ने अपने वीडियो में हवाई अड्डों पर खालिस्तान और कश्मीर के झंडे फहराने जैसी मांगें भी की हैं। हालांकि, ज्यादातर भारतीयों ने इसे सिर्फ पन्नू की ड्रामेबाजी और ध्यान खींचने का प्रयास बताया है।

भारतीय सिख समुदाय ने पन्नू को ठुकराया

गुरपतवंत पन्नू, जो खुद को भारतीय सिख समुदाय का प्रतिनिधि बताता है, उसकी विभाजनकारी विचारधारा को भारतीय सिखों ने बार-बार खारिज किया है। देशभर के सिख नेताओं, विद्वानों और आम नागरिकों ने साफ कहा है कि पन्नू की हरकतें सिख धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं। सिख धर्म शांति, समानता और मानवता की सेवा का संदेश देता है, जबकि पन्नू की गतिविधियां नफरत और हिंसा को बढ़ावा देती हैं।

भारत को अस्थिर करने की साजिश

पन्नू की बार-बार की गई कोशिशें भारत को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा मानी जा रही हैं। हाल ही में उसने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जुड़े निराधार आरोप लगाए थे। इसके अलावा, वह हिंसा का आह्वान करने और भारत के खिलाफ झूठा प्रचार फैलाने में भी सक्रिय है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पन्नू के भारत-विरोधी प्रोपेगेंडा को खास अहमियत नहीं मिली है। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय और अंतरराष्ट्रीय मंचों ने उसके बयानों को गंभीरता से नहीं लिया।

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