भारत से गहरी दोस्ती के लिए व्याकुल दिख रहे है बाइडन,कर सकते है सैन्य मदद का ऐलान

भारत से गहरी दोस्ती के लिए व्याकुल दिख रहे है बाइडन,कर सकते है सैन्य मदद का ऐलान

नई दिल्ली: यूक्रेन की सेना को अरबों डॉलर के हथियार देकर रूस की सेना में त‍बाही मचाने के बाद अब अमेरिका की नजर अब व्‍लादिमीर पुतिन के दोस्‍तों पर भी है। अमेरिका भारत के लिए एक सैन्‍य सहायता पैकेज तैयार कर रहा है ताकि नई दिल्‍ली के साथ रक्षा संबंधों को और ज्‍यादा मजबूत किया जा सके।साथ ही भारत की रूसी हथियारों पर निर्भरता को कम किया जा सके। बताया जा रहा है कि अमेरिकी भारत को 500 मिलियन डॉलर यानी की लगभग 3800 करोड़ रुपये की सैन्य सहायता देने पर विचार कर रहा है।

समाचार एजेंसी ब्‍लूमबर्ग ने इस पूरे मामले से जुड़े एक व्‍यक्ति के हवाले से कहा कि इतनी मोटी रकम देने के पीछे अमेरिकी की मंशा भारत के साथ अपने रक्षा संबंधों को मजबूत बनाना भी है। अगर भारत को ये रकम मिलती है तो वह इजरायल और इजिप्ट के बाद अमेरिका से सबसे बड़ी सैन्य सहायता पाने वाला देश बन जाएगा। ये घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है, जब भारत अमेरिका की कथित नाराजगी को नजरअंदाज रूसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 को तैनात करने जा रहा है।

समझौते की घोषणा कब होगी या कौन-कौन से हथियारों को शामिल किया जाएगा। एक वरिष्‍ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि अमेरिका का यह कदम राष्‍ट्रपति जो बाइडन की ओर से भारत को लंबी अवधि के लिए सुरक्षा सहयोगी बनाने के प्रयासों का हिस्‍सा है। जिसके तहत वह भारत को लंबे समय के लिए अपना रक्षा सहयोगी बनाना चाहते हैं। अमेरिका हर मोर्चे पर भारत का विश्वसनीय सहयोगी बनना चाहता है। अमेरिका खुद ही नहीं, बल्कि अन्य देशों को भी भारत की मदद के लिए मनाने में जुटा है। अधिकारी के मुताबिक, बाइडेन प्रशासन फ्रांस को इस बात के लिए मना रहा है कि वह भारत की सैन्य जरूरतें पूरी करने के लिए काम करे। हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि इस सैन्य मदद की घोषणा कब तक की जाएगी और इसमें किन-किन हथियारों को शामिल किया जाएगा।

यूक्रेन पर हमला करने को लेकर रूस इन दिनों अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के निशाने पर है। तमाम देशों ने उस पर पाबंदी लगा दी है। लेकिन भारत ने अब तक तटस्थ रुख अपनाया हुआ है। अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत ने यूक्रेन हमले के लिए रूस की सीधी आलोचना नहीं की है। रूस से संबंध तोड़ने की तमाम अपीलों के बावजूद भारत उससे सस्ते दामों पर तेल खरीद रहा है। इसे लेकर शुरू में अमेरिका में काफी नाखुशी भी देखी गई। लेकिन अब वो उसे बड़े सुरक्षा सहयोगी के रूप में लुभाने में जुट गया है।

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