‘दल-दल’ संकट के बादल

‘दल-दल’ संकट के बादल

विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों में बैठकों का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता में हरियाणा कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक हुई, जिसमें कुमारी शैलजा की ओर से फैसला लिया गया कि मौजूदा सभी 17 विधायकों को टिकट दिया जाएगा। और 30 सितंबर तक कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी जाएगी।

हालांकि कांग्रेस की कलह उसकी राह का अबतक रोड़ा बनी हुई है। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर का बैठक में गैरहाजिर रहना, और अलग से अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करना पार्टी नेताओं के लिए मुश्किल बढ़ा रहा है यहां कांग्रेस ही अकेली ऐसी पार्टी नहीं है, जिसके नेता उसकी मुश्किल बढ़ा रहे हों बल्कि बीजेपी में भी कुछ नेता इस मामले में अब पीछे नहीं हैं।

कहीं अंतर्कलह तो कहीं टिकट की मांग सियासी दलों के लिए मुश्किल का सबब बनती दिखाई दे रही है। एक तरफ कांग्रेस है जो अपने ही पार्टी सदस्यों की अंतर्कलह से जूझ रही है। संगठन में बदलाव जरूर हो गया है। लेकिन जिस गुटबाजी को खत्म करने का दावा किया जा रहा था, वो अब भी दिखाई दे रही है। दिल्ली में कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक होती है। जिसमें राज्य इकाई के सभी वरिष्ठ नेता मौजूद रहे सिवाय पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में शामिल न होकर अशोक तंवर ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ अलग बैठक की और जब उनसे पार्टी की बैठको में न जाने पर सवाल किया गया, तो अशोक तंवर ने साफ कहा कि मुझे बैठक में जाने की जरूरत नहीं,  क्योंकि वहां पर कुछ लोगों को मेरे आने से दिक्कत होती है इसलिए मैं वहां नहीं जाना चाहता। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर ने ये भी कहा कि  'मेनिफेस्टो बैठक की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि मेनिफेस्टो तो 18 अगस्त को ही रोहतक में जारी कर दिया गया था।

इसके अलावा नव नियुक्त प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा के बीच तालमेल में कितनी कमी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तंवर ने कहा कि शैलजा कैसे कह सकती हैं कि मैंने उनके फ़ोन नही उठाए, मैं सबके फोन उठता हूं। साथ ही टिकट वितरण को लेकर भी तंवर ने अपनी राय जाहिर की और कहा कि जो पुराने चुनाव लड़ते आ रहे हैं, उन्हें टिकट नहीं मिलने चाहिए।

नए लोगों को मौका दिया जाए कांग्रेस में तो कलह है ही लेकिन बेजेपी नेताओं को भी ये हवा लगती नजर आ रही है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह और कृष्णपाल गुर्जर अपनी बेटी और बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं। दोनों ही सांसदों का तर्क है कि अगर चौधरी बीरेंद्र के परिवार से तीन-तीन लोग संसद और विधानसभा में जा सकते हैं तो उनके परिवार का दूसरा सदस्य टिकट क्यों नहीं पा सकता?  दो दिन पूर्व पार्टी मुख्यालय में चुनाव को ले कर हुई बैठक में इस मुद्दे पर बेहद तीखी बहस हुई।

राज्य नेतृत्व में हुए परिवर्तन के बावजूद भी कांग्रेस पार्टी अपनी आंतरिक कलह से बाहर नहीं निकल पा रही है। जो गुट और खेमे पहले थे वही अब भी बरकरार हैं। उधर राज्य को दो कद्दावर नेताओं की अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट की जिद ने बीजेपी नेतृत्व की उलझन बढ़ा दी है। देखना ये होगा कि दल दल गहराए इन संकट के बादलों का सामना सियासी दल कैसे करते हैं।

 

 

 

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