Haryana: संसद के आगामी सत्र में फिर गूंजेगी किसानों की आवाज़ - दीपेंद्र हुड्डा

Haryana: संसद के आगामी सत्र में फिर गूंजेगी किसानों की आवाज़ - दीपेंद्र हुड्डा

चरखी दादरी: हरियाणा के भिवानी-चरखी दादरी स्थित कितनाला टोल प्लाजा पर चल रहे अनिश्चितकालीन किसान धरने पर पहुंचकर आंदोलनरत किसानों से मुलाकात की और उनका हाल-चाल पूछा। उन्होंने कहा कि एक साल से किसान सड़कों पर शांतिपूर्वक बैठे हैं, इस दौरान 700से ज्यादा किसानों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी, लेकिन अहंकार में डूबी सरकार राजहठ छोड़ने तक को तैयार नहीं है। वो लगातार किसानों को प्रताड़ित कर रही है। सरकार न तो सड़कों पर बैठे किसानों की बात सुन रही है न ही संसद में किसान की आवाज सुनने के लिये तैयार है।

सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने ने किहा कि जैसे ही वो संसद में किसानों की आवाज़ उठाते हैं उनका माईक बंद करा दिया जाता है। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि माईक बंद कराके किसानों की आवाज़ दबाई नहीं जा सकती। किसान देश की आत्मा हैं, उनकी आवाज़ कुचली नहीं जा सकती। वे संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में फिर किसानों की आवाज़ पुरजोर तरीके से उठायेंगे।दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार को किसानों से बिना शर्त बातचीत करना चाहिए और समाधान निकालना चाहिए। जिन तीन कृषि कानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं वे किसान के साथ-साथ आम जन पर भी प्रतिकूल असर डालेंगे। यदि ये तीनों कानून लागू हो गये तो आम गरीब की रोटी बड़े सरमायेदारों की मुठ्ठी में कैद हो जायेगी। सांसद दीपेंद्र ने कहा कि बढ़ती महंगाई ने किसानों और आम गरीब की कमर तोड़ दी है। डीजल, खाद, बीज, कृषि उपकरण आदि महंगे होने से खेती की लागत बढ़ गयी, जबकि किसान की आमदनी बढ़ने की बजाय घट गयी है।

मंडियों में फसल बेचने पहुंचे किसानों को एमएसपी तक नहीं मिल रहा है। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि पिछले दिनों बड़़े पैमाने पर अतिवृष्टि से हजारों एकड़ में फसल खराब हो गयी, जिसका कोई मुआवजा किसानों को अब तक नहीं मिला। इतना ही नहीं, खेतों में बड़े पैमाने पर पानी भरा हुआ है। पानी की निकासी न होने से रबी की फसल की बिजाई भी नहीं हो पायेगी। इसके अलावा पूरे प्रदेश में खाद की किल्लत और कालाबाजारी से किसान परेशान हैं। पुलिस थानों में नाम मात्र की खाद बंटवायी जा रही है। किसान की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं।

उन्होंने कहा कि महंगाई की मार झेल रहे किसान को सबसे बड़ा दुःख इस बात का है कि जब टमाटर उसके खेत में था तो उसे लागत भाव में भी कोई नहीं खरीद रहा था। इससे दुःखी किसानों ने अपना टमाटर ट्रालियों में भरकर सड़कों पर फेंक दिया। अब विडम्बना ये है कि उसके पैदा किये जिस टमाटर को कोई नहीं खरीद रहा था आज किसान को खाने के लिये वही टमाटर 100 रुपये किलो में खरीदना पड़ रहा है। यही हाल प्याज, दाल और सरसों का है। महंगाई की मार झेल रहे किसान पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर पहुंच गये हैं।

Leave a comment