kanhaiya kumar : ‘कांग्रेस का पतन’ कन्हैया का सहारा

kanhaiya kumar : ‘कांग्रेस का पतन’ कन्हैया का सहारा

नई दिल्ली:  कहते हैं कि इतिहास की किताब के चार से पांच पन्ने एक साथ पलट जाएं,तो कई दशक निकल जाते हैं.लेकिन इन दशकों में कुछ ऐसी कहानियां गढ़ दी जाती हैं.जिनके जिंदा होने की सुगबुगाहट शतकों तक महसूस होती है, हालांकि इस सुगबुगाहट की खुशबू कुछ लोग ही समेटने में कामयाब रहते हैं. कुछ ऐसी ही कामयाबी की दस्तक ने कन्हैया कुमार को भी आवाज दी है, और उस कामयाबी का शीर्षक हैं ‘कांग्रेस का पतन’

कांग्रेस का पतन इस शब्द की वास्तविकता को खत्म करने के लिए कन्हैया कुमार का चुनाव हुआ है. वो कन्हैया कुमार जिनके पास शब्दों का अपना गोदाम है, हालांकि इस बात को भी मानने से इन्कार नहीं किया जा सकता कि कन्हैया के गोदाम में ज्यादातर शब्द मोदी विरोधी हैं. जो कांग्रेस की कमान में बिल्कुल फिट बैठते हैं.वामपंथी विचारधारा की नींव में खड़े होकर खुद को बड़ा करने वाले कन्हैया कुमार देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी से जुड़ते हीं दक्षिणपंथी हो चुके हैं. भले ही वो इस बात से लाख इन्कार कर लें.

कन्हैया कुमार साल 2015 में JNU(जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए और फरवरी 2016 में भारती संसद पर हमला करने वाले आरोपी अफजल गुरू के पक्ष में नारे लगानेका आरोप लगा है. इसके साथ ही देश द्रोह का मामला लगते ही कन्हैया कुमार को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार तक कर लिया था. अब इसे गिरफ्तारी कहिए या फिर कन्हैया के उज्जवल भविष्य की चाभी.कोई सुबूत नहीं होने के कारण उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया. कन्हैया की रिहाई के बाद JNU के छात्रों ने उनका कुछ यूं स्वागत किया मानो साउथ में रजनीकांत की फिल्म ब्लॉकबस्टर हो गई हो. फिर क्या था, कन्हैया की एक आजादी के लिए ताल ठोकती स्पीच ने पूरे देश में उन्हें पहचान दे दी.  

जेएनयू में पीएचडी करने वाले कन्हैया कुमार अपनी छात्र राजनीति में एआईएसए, एबीवीपी, एसएफआई और एनएसयूआई के सदस्यों को मात दे चुके हैं हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बिहार के दिग्गज नेता गिरिराज सिंह के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन अब कन्हैया कुमार के पास बिहार की राजनीति बदलने के साथ-साथ कांग्रेस की डूबती नैया को पार कर खुद को साबित करने का बड़ा मौका है. इस मौके में कन्हैया कुमार खुद को कितना साबित कर पाते हैं.. इसे देखने के लिए अभी वक्त है. लेकिन ‘बिहार से तिहाड़ तक’ का सफर तय करने वाले कन्हैया के सामने अब चुनौती थोड़ी बडी है.

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