रायपुर: देश के सबसे बड़े नक्सली हमलों में से एक झीरम घाटी घटना को 10 साल बीत चुके हैं। झीरम घाटी कांड के पूरे 10 साल हो गए। आज से ठीक 10 साल पहले 25 मई 2013 को बस्तर जिले के झीरम घाटी में देश के सबसे बड़े नक्सली हमला हुआ था। इस नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं समेत कुल 32 लोग शाहदत हुए थे। लेकिन अभी भी झीरम को लेकर सिसकियां, सवाल और सियासत का सिलसिला जारी है।10 साल बाद भी झीरम का न्याय अधूरा है। दोषी अभी भी खुले में घूम रहे हैं, जांच एजेंसियों का मंसूबा अभी भी सवालों में हैं
मुख्यमंत्री डॉ. भूपेश बघेल ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि पहले रमन्ना का नाम था, बाद में 2014 में प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से रमन्ना का नाम नहीं था. मोदी सरकार रमन्ना और गणपति को क्यों बचा रही है? उन्होंने कहा कि डॉ. रमन सिंह के खासमखास धरमलाल कौशिक ने आयोग के गठन के बाद स्टे लिया। बीजेपी जांच में रुकावट क्यों डाल रही है? बीजेपी किसको छुपाना चाह रही है? जो सवाल मैंने उठाये हैं जवाब दें।
मुख्यमंत्री ने बड़ा सवाल खड़ा किया
जब झीरम हमले के लिए रमन्ना और गणपति को जिम्मेदार मानते हुए एफआईआर में नाम दर्ज कराया गया था, तो आखिर केंद्र सरकार की NIA की जांच में उन दोनों का नाम कैसे गायब हुआ। मनमोहन सिंह सरकार ने जांच की जब घोषणा की थी, तो उसमें गणपति और रमन्ना दोनों का नाम था, लेकिन केंद्र में बीजेपी की सरकार बनते ही दोनों का नाम गायब हो गया। आखिर इन दोनों को क्यों बचाया गया। क्योंकि इनकी संपत्ति जब्त नहीं की गयी
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