क्या शेयर बाजार की हलचल दे रही है आर्थिक मंदी के संकेत? जानें 100 सालों में भारतीय रुपये का हाल

क्या शेयर बाजार की हलचल दे रही है आर्थिक मंदी के संकेत? जानें 100 सालों में भारतीय रुपये का हाल

Rupee Hits Record Low: हाल के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कई चिंताएं सामने आई हैं। जुलाई से नवंबर 2024के बीच होम लोन, वाहन लोन और रिटेल लोन में एक के बाद एक13%, 16%और 13%की गिरावट आई है। यह संकेत करता है कि देश की आर्थिक स्थिति कुछ कमजोर हो रही है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतें 80डॉलर प्रति बैरल के पार जा चुकी हैं, जो चिंता का विषय है।

सरकार के प्रयास और वर्तमान आर्थिक स्थिति

इन आर्थिक चुनौतियों के बावजूद सरकार लगातार सुधार की कोशिश कर रही है। वित्त मंत्री ने हाल ही में संसद में स्थिति को नियंत्रित बताते हुए बैंकों से ब्याज दरों में कमी और आयकर में कटौती की बात की है, ताकि आम जनता को राहत मिल सके। हालांकि, सरकार का 10ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य एक बड़ी चुनौती है। खासकर जब रुपया 86के स्तर पर पहुंच चुका है। 2014में डॉलर का मूल्य 61रुपये था, तब भारतीय अर्थव्यवस्था 5ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती थी। अब स्थिति बदल चुकी है, और यह एक कठिन कार्य लगता है।

रुपया 100सालों में कैसे बदल चुका है?

रुपये की स्थिति में 100सालों में बड़ा बदलाव आया है। 1925में 1अमेरिकी डॉलर की कीमत 2.76रुपये थी, जबकि आज वही डॉलर 86.62रुपये का हो चुका है। इस बदलाव का मुख्य कारण मुद्रास्फीति, वैश्विक आर्थिक नीतियां और अन्य बाहरी कारक रहे हैं, जिन्होंने रुपये की ताकत को कमजोर किया है।

1944में ब्रिटन वुड्स समझौते के बाद दुनियाभर की मुद्राओं की कीमत तय की जाने लगी। भारत की स्वतंत्रता के बाद से रुपये और डॉलर के मुकाबले की शुरुआत हुई। 1970के दशक में वैश्विक तेल संकट और मुद्रास्फीति के कारण रुपये की क्रय शक्ति में गिरावट आई।

100सालों में रुपये की गिरावट के कारण

परचेजिंग पावर में कमी:1920के दशक में रुपये की क्रय शक्ति मजबूत थी, लेकिन समय के साथ यह कमजोर होती गई। आज 1रुपये में वह चीजें नहीं खरीदी जा सकतीं, जो 100साल पहले खरीदी जा सकती थीं।

एक्सचेंज रेट में गिरावट:1947में 1अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 1रुपये की कीमत थी, जो अब 86रुपये तक पहुंच चुकी है।

रुपया और डॉलर की गिरावट के प्रमुख दौर

1947-1971:स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने स्थिरता का अनुभव किया, लेकिन इसके बाद रुपये में गिरावट शुरू हो गई।

1971-1991:वैश्विक अस्थिरता और आर्थिक संकट के कारण रुपये की स्थिति प्रभावित हुई।

1991-2010:वैश्वीकरण और आर्थिक सुधारों के बावजूद रुपये में गिरावट जारी रही।

2008: वैश्विक मंदी के बाद रुपये की स्थिति कमजोर हुई।

2020: कोविड-19महामारी के कारण रुपये में और गिरावट आई।

2025: वर्तमान में रुपये का मूल्य 86 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच चुका है, जो एक रिकॉर्ड निचला स्तर है।

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