Rupee At Life Time Low: भारतीय रुपये में लगातार गिरावट का असर अब न सिर्फ शेयर बाजार, बल्कि करेंसी बाजार पर भी साफ दिखाई दे रहा है। सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 23पैसे गिरकर 86.27के स्तर पर पहुँच गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। इस गिरावट के कारणों को समझना और इसके प्रभाव को जानना जरूरी है।
रुपये की गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है। इस सप्ताह के पहले कारोबारी दिन रुपया 86.27प्रति डॉलर तक पहुँच गया, जो एक नया रिकॉर्ड है। इससे पहले शुक्रवार को रुपया 86.04पर बंद हुआ था। किसी भी देश की मुद्रा में गिरावट का सीधा असर उसकी सरकार और जनता पर पड़ता है। भारतीय रुपये के मामले में भी यही देखा जा रहा है।
रुपया क्यों गिर रहा है?
रुपये की गिरावट के पीछे कई कारण हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कम हो रही हैं, जिससे डॉलर मजबूत हो रहा है। इसके अलावा, विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकालकर अमेरिकी बाजारों में निवेश कर रहे हैं। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें (81.20डॉलर प्रति बैरल) और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी अनिश्चितताएँ भी रुपये की गिरावट को बढ़ावा दे रही हैं।
कमजोर रुपये का आम आदमी पर असर
रुपये की गिरावट का असर आम आदमी पर भी दिखाई देता है। यदि आप विदेश में अपने बच्चे को पैसे भेजते हैं, तो अब आपको पहले से ज्यादा रुपये खर्च करने होंगे। डॉलर के मजबूत होने से आपके रुपये की वैल्यू घट जाएगी। वहीं, अगर कोई विदेश से आपको पैसे भेजता है, तो आपको ज्यादा रुपये मिलेंगे।
महंगाई बढ़ने का खतरा
कमजोर रुपये से आयात महंगा हो जाता है, खासकर कच्चे तेल का आयात। भारत अपनी अधिकांश ऊर्जा जरूरतें आयात करता है। रुपये की गिरावट से तेल आयात का बिल बढ़ेगा। इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जो महंगाई को और बढ़ाएगा।
समग्र रूप से, रुपये की गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर दबाव बना रही है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को जल्दी प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
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