जामिया मिलिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक दर्जा गलत- बीजेपी

जामिया मिलिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक दर्जा गलत- बीजेपी

केन्द्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का विरोध किया है।

सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशनस (एनसीएमईआई) के उस फैसले पर असहमति जतायी है, जिसमें एनसीएमईआई ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया है। बता दें कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में साल 2011 में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने एनसीएमईआई के फैसले का समर्थन किया था और कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने की बात स्वीकारी थी। केन्द्र सरकार ने अपने स्टैंड के पक्ष में कोर्ट में दाखिल किए अपने हलफनामे में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य केस (साल 1968) का हवाला देते हुए बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो यूनिवर्सिटी संसद एक्ट के तहत शामिल है, उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं माना जा सकता।

सरकार ने बीते 5 मार्च को यह हलफनामा कोर्ट में दाखिल किया, जिसे 13 मार्च को कोर्ट में रिकॉर्ड किया गया। हलफनामे में कहा गया है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन होता है और जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वालों की ही अधिकता हो। ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता। इसके साथ ही हलफनामे में कहा गया है कि जामिया अल्पसंख्यक संस्था इसलिए भी नहीं है क्योंकि इसे संसद एक्ट के तहत बनाया गया और केन्द्र सरकार इसे फंड देती है।जामिया के इस फैसले के विरोध में कोर्ट में 5 याचिकाएं दाखिल की गई। इस पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा तो तत्कालीन यूपीए सरकार के मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर एनसीएमईआई के फैसले का समर्थन किया।

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