नोटबंदी का एक साल पूरा, क्या खोया, क्या पाया?
8 नवंबर 2016 कोप्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए पांच सौ और हजार के नोट पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। यानि 500और 1000 की पुरानी करेंसी को बंद कर दिया था। पीएम के इस एक फैसले को एक साल हो गया है। अब सवाल ये है कि हमने एक साल में क्या पाया और क्या खोया?
कब हुई थी नोटबंदी ?
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8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500,1000 के नोट बंद करने का एलान किया
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नोटबंदी के एलान के वक्त देश में 17 लाख करोड़ रुपए की करंसी चलन में थी
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86 फीसदी यानी 15.4 लाख करोड़ रुपए की करंसी 500 और 1000 के नोटों की शक्ल में थी
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8 नवंबर से 31 दिसंबर 2016 तक 500-1000 के नोट बदलने की मोहलत दी गई
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एटीएम से कैश निकालने की 2000 रुपए प्रतिदिन लिमिट तय की गई
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500-2000 के नए नोट जारी किए गए
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43 दिन में 60 बार नियमों में बदलाव किया गया
नोटबंदी के फायदे
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नोटबंदी से डिजिटल लेन-देन बढ़ा,आकंड़ों के मुताबिक, मार्च-अप्रैल 2017 में तकरीबन 156 करोड़ का लेनदेन हुआ
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वित्त मंत्रालय की हालिया जारी रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर के दौरान 1.24 लाख करोड़ रुपए के डिजिटल ट्रांजैक्शंस हुए हैं
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रोजमर्रा के कामों में भी डिजिटल लेनदेन देखने को मिला
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डेबिट कार्ड, एम वॉयलेट, आइपीएस और पेटीएम जैसी डिजिटल सेवाओं से डिजिटल लेनदेन बढ़ा
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नोटबंदी से बैंकों में काफी पैसा आया जो बैंको ने आम आदमी को सस्ते कर्ज के रूप में दिया
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नोटबंदी से महंगाई पर भी लगाम लगी, रोजमर्रा की ज्यादातर वस्तुएं सस्ती हुईं
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नोटबंदी के बाद करीब 2.24 लाख फर्जी कंपनियों को बंद किया गया
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नोटबंदी से हवाला कारोबार, आतंकियों की फिंडिग और घाटी में पत्थरबाजी में कमी आई
नोटबंदी से नुकसान ?
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नोटबंदी होने की वजह से व्यापारी से किसी भी तरह का लेन-देन नहीं कर पाए
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सीएमआइई के सर्वे के मुताबिक नोटंबदी की वजह से लाखों लोगों की नौकरी चली गई
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नोटबंदी का असर छोटे उद्योगों पर भी देखने को मिला
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खासकर उन पर जहां कैश में लेन-देन होता था
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इसकी वजह से रोजगार ठप्प पड़ गया और कई व्यापारियों को घर बैठना पड़ा
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नोटबंदी का प्रभाव से कृषि के क्षेत्र में भी पड़ा
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जीडीपी इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड ने 2017-18 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 0.50% घटाकर 6.7% किया था
जिस कालेधन को निकालने के लिए नोटबंदी की गई थी उसी को लेकर विपक्ष हमेशा सरकार से सवाल पूछता है कि नोटबंदी से कितना काला धन सामने आया है। ये सवाल आज भी ज्यों के त्यों हैं, क्योंकिसरकार के पास कालेधन को लेकर कोई ठोस आंकड़े नहीं हैं।
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