चीन ने नेपाल में इस मामले में भारत का एकाधिकार समाप्त किया

चीन ने नेपाल में इस मामले में भारत का एकाधिकार समाप्त किया

ऑप्टिकल फाइबर के जरिए नेपाल में घुसा चीन, जानें- भारत के लिए मायनेऑप्टिकल फाइबर के जरिए नेपाल में घुसा चीन, जानें- भारत के लिए मायनेनेपाल में चीन जब भी किसी योजना को अमलीजामा पहुंचाता है, वो भारत के लिए एक नया खतरा होता है।

नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच नेपाल बफर स्टेट की तरह काम करता है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर पर नेपाल अपने आपको भारत के करीब पाता रहा है। दोनों देशों के बीच रिश्तों को और पुख्ता बनाने के लिए 1950में महासंधि हुई, जिसके तहत भविष्य की कार्ययोजनाओं का रूपरेखा तय किया गया। ये बात अलग है कि चीन को ये संधि कभी रास नहीं आई। चीन ने लगातार नेपाल में मौजूद भारत विरोधी ताकतों  को उभारने में जुटा रहा है। भारत के लिए नेपाल के मन में खटास लाने के लिए चीन लगातार कुछ खास नीतियों पर काम करता रहा है। अभी हाल ही में चीन ने ऑप्टिकल फाइबर के जरिए नेपाल में दखल दी है और भारत के लिये चुनौती पेश किया है। चीन की ये कोशिश क्या सिर्फ अपने व्यापार को सिर्फ आगे बढ़ाने की है या वो अब नेपाल को पूरी तरह से अपने काबू में रखना चाहता है इसे समझने से पहले हम आप को बताएंगे की चीनी इंटरनेट की स्पीड क्या है। नेपाल इस तथ्य को जानते हुए भी क्यों चीन की तरफ झुक रहा है।

नेपाल में शुक्रवार से चीन के इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू हो गया। ऐसा पहली बार है कि नेपाल ने इंटरनेट एक्सेस के लिए भारत की जगह किसी और देश का रूख किया है। चीन की ऑप्टिकल फाइबर की मदद से नेपाल की राजधानी काठमांडू से 50किमी दूर रसुवागढ़ी बॉर्डर तक 1.5गीगा-बाइट्स पर सेकेंड (GBPS) की स्पीड मिलेगी। लेकिन ये स्पीड भारत के 34 GBPS की स्पीड से काफी कम है। इससे पहले इंटरनेट के लिए नेपाल अब तक पूरी तरह से भारत पर निर्भर था। 2016में MoU साइन होने के बाद नेपाल को चीन से इंटरनेट मिलने का रास्ता साफ हो गया था।

नेपाल के संचार मंत्री बसनेट ने कहा कि चीन और नेपाल में ऑप्टिकल फाइबर लिंक स्थापित होना एक मील का पत्थर है। इससे देशभर का इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर काफी विकसित होगा। इतना ही नहीं इससे नेपाल-चीन के बीच अच्छा होगा। वहीं नेपाल में चीन के राजदूत यू होंग ने कहा कि दोनों देशों ने ना सिर्फ इंटरनेट कनेक्शन की दूरी कम की है बल्कि व्यापार में भी एक-दूसरे के लिए नई क्षमताएं खड़ीं कर दी हैं।

भारत को दोनों देशों के विकास को साथ लेकर चलने की पहल करनी चाहिए, जिसके स्पष्ट संकेत प्रधानमंत्री मोदी ने दिए थे। पनबिजली, सड़क जोड़ना, व्यापार के मामलों में दोनों देश एक-दूसरे के सहयोग के बिना आगे नहीं बढ़ सकते हैं।नेपालियों को यह शिकायत है कि वे जो हथियार खरीदते हैं, उन्हें इसके लिए भारत को पूछना पड़ता है।1950की  संधि में लिखा हुआ है कि नेपाल एक संप्रभु राष्ट्र है। इसके साथ ही उसमें लिखा है कि अगर किसी तीसरे राज्य से कोई खतरा होता है तो दोनों देश आपस में सलाह करेंगे।

नेपाल कहता है कि आप हमसे पूछते नहीं हो और हम पर दबाव डालते हैं कि हम बताएं कि चीन के साथ क्या हो रहा है, पाकिस्तान के साथ क्या हो रहा है। लेकिन इसमें पेंच यह है कि अगर समुद्र की ओर से भारत को चीन या पाकिस्तान से खतरा होता है तो उससे नेपाल पर कोई असर नहीं पड़ता है। फिर भी इस संधि पर दोनों पक्षों को गंभीरतापूर्वक चर्चा करने की जरूरत है। संधि में कहा गया है कि जो अधिकार नेपाली नागरिकों को हासिल है वही भारतीयों को भी मिले। लेकिन नेपाल में ये हक भारतीयों को नहीं मिलता है।

इसलिए संधि में जो समानता के आधार की बात होती है वह एकतरफा है। भारत के लिए सुरक्षा महत्वपूर्ण है।संधि में कहा गया है कि विकास के कार्यों में भारत नेपाल को प्राथमिकता दे, लेकिन नेपाल इसे कभी का भुला चुका है।संसाधन विकास की जो संधियां हुई हैं,उन्हें संसद में दो-तिहाई बहुमत से मंजूरी मिलनी चाहिए जो कभी नहीं मिलती है। जो भी संधियां या अनुबंध हुए हैं उनका ठीक से क्रियान्वयन नहीं किया जाता है।

भारत को अगर अपना हित देखना है तो वो यह कहेगा कि जो हम आपके लिए करते हैं, आप भी हमारे नागरिकों के लिए कीजिए। यह नेपाल के लिए संभव नहीं होगा। नेपाल यह चाहता भी नहीं है। दूसरा भारत यह चाहेगा कि नेपाल कोई ऐसा काम न करे, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो। क्योंकि नेपाली आसानी से भारत में आ सकता है इसलिए बहुत सारे पाकिस्तानी नेपाल के रास्ते भारत में आ जाते हैं, वीजा हो या न हो।

अगर उन्होंने फर्जी नेपाली पहचान पत्र हासिल कर लिया तो पासपोर्ट बनाने की जरूरत ही नहीं, वह कह सकते हैं कि हम नेपाली हैं। भारतीय सुरक्षा बल आरोप लगाते रहे हैं कि नेपाल से जाली मुद्रा भारत आ रही है। अगर चीन का प्रभाव तराई में बढ़ेगा तो भारत को यह डर रहेगा कि नक्सलवादियों या अन्य चरमपंथियों तक चीन जब चाहे पहुंच सकता है।

भारत और चीन के बीच एक जैसे रिश्ते कभी नहीं रहे। 1954में पंचशील सिद्धांत के जरिए एक दूसरे की भावनाओं के सम्मान पर बल दिया गया था। लेकिन 1964में भारत के साथ चीन ने विश्वासघात किया। बदलते हुए समय के साथ जब भारत की ताकत दुनिया में पहचानी जाने लगी तो चीन को ये समझ में आने लगा कि अब वो भारत को नजरंदाज नहीं कर सकता है।

पहले भारत कहा करता था कि सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की जरूरत है। लेकिन अब चीन की तरफ से इस तरह के बोल सुनाई देते हैं कि अब उन्हें भी खुले दिमाग से इस विषय पर आगे बढ़ने की जरूरत है। चीन जहां एक तरफ वन बेल्ट, वन रोड के जरिए भारत को रोकने की कोशिश कर रहा है वहीं भारत ने भी हाल ही में चीन के शियामेन शहर में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान साफ कर दिया कि विवादित मुद्दों पर चीन की एकतरफा राय को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

Leave a comment